Tuesday, June 03, 2025

Thoughts



 इन खयालो के समुंदर में 

मैं उलझ रहा  हर पल 

कभी बीती हुई बातों को लेकर 

तो कभी आने वाला कल 


मानो युद्ध सा चल रहा 

अपने मन के अंदर 

जाने कहाँ से आते हैं ये ख्याल 

मेरी तो समझ से बहार है ये यंत्र 


क्यूँ नवाज़ा प्रभु ने इस शक्ति से हमें 

मुझसे न संभल पायेगा ये हुनर 

जो सोचने का बोझ अगर होता कम 

फिर ज़िन्दगी का अलग ही होता चरन  


न खयालो का भवंडर सँभालने मे मन होता हताश 

जो हो रहा जीवन मे उसी मे रहता मग्न 

जीवन मिला है जीने के लिए 

न किसी को दिखाने या सुनाने  के लिए

जो मिला उसी मे रहो संतुष्ट 

शायद यही है जीवन का मूल अर्थ


भागे जा रहे हम इस रेस मे 

जिसका न कोई अंत 

भौतिकवाद हासिल कर भी लो   

फिर भी लगे कुछ रह गया कम 


अपने को सुधारने मे लगाओ मन  

दूसरों से न रखो कोई बैर 

जो लिखा हे क़िस्मत मे वो मिलेगा तुम्हें ज़रूर 

सोचने मे नहीं करने मे हो सारा जोर 


आज मे जियो क्या रखा है आने या बीते हुए कल मे 

जीवन बनेगा सरल जब अपनाओ ये तरीकाअपने रहने मे 

मासूम बच्चे को देख लगे यही है देता सिख 

बने रहो वर्त्तमान मे यही है मनुष्य की नीव 


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