इन खयालो के समुंदर में
मैं उलझ रहा हर पल
कभी बीती हुई बातों को लेकर
तो कभी आने वाला कल
मानो युद्ध सा चल रहा
अपने मन के अंदर
जाने कहाँ से आते हैं ये ख्याल
मेरी तो समझ से बहार है ये यंत्र
क्यूँ नवाज़ा प्रभु ने इस शक्ति से हमें
मुझसे न संभल पायेगा ये हुनर
जो सोचने का बोझ अगर होता कम
फिर ज़िन्दगी का अलग ही होता चरन
न खयालो का भवंडर सँभालने मे मन होता हताश
जो हो रहा जीवन मे उसी मे रहता मग्न
जीवन मिला है जीने के लिए
न किसी को दिखाने या सुनाने के लिए
जो मिला उसी मे रहो संतुष्ट
शायद यही है जीवन का मूल अर्थ
भागे जा रहे हम इस रेस मे
जिसका न कोई अंत
भौतिकवाद हासिल कर भी लो
फिर भी लगे कुछ रह गया कम
अपने को सुधारने मे लगाओ मन
दूसरों से न रखो कोई बैर
जो लिखा हे क़िस्मत मे वो मिलेगा तुम्हें ज़रूर
सोचने मे नहीं करने मे हो सारा जोर
आज मे जियो क्या रखा है आने या बीते हुए कल मे
जीवन बनेगा सरल जब अपनाओ ये तरीकाअपने रहने मे
मासूम बच्चे को देख लगे यही है देता सिख
बने रहो वर्त्तमान मे यही है मनुष्य की नीव
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