जीवन के उतार चढ़ावे में
हम भी गश्त लगा रहे
सोचने की फुर्सत कहां भाई
Mobile,Netflix और OTT platforms हमें भगा रहे
उस उन्नती को क्या कहें
जिससे हम अपना मोटापा और बीमारियां बड़ा रहें
Phone पे सब मिंटो मे आये
तो फिर market के चक्कर कौन लगाए
हमारा समय है सीमित
परन्तुं नयी नयी चीजों से इसे उलझा रहे
ऐसा लगे मानो बिस्तर पे पड़े हुए ही
हम दुनिया चला रहें
घर से काम दिन रात कर रहें
खाने से लेके grocery तक Swiggy ,Zomato ,Blinkit, Zepto को अपना दोस्त बना रहें
है ये उलझन की आखिर इसे फायदा कहें या नुक्सान
वक़्त का तकाज़ा है दरखाता इसको किस तरह से परखा जायें
मन बेचैन सा रहे इन Gadgets के बीच
फिर कहे चल Trek पे चला जाए
उन हासिन वादियों मे फ़िर ख़ुद को खो कर
रूबरू रुह से जुड़ा जाए
तो मनाया मन एक लम्बे Trek पे जाने का
तो बीवीं ने अपने तेवर दिखाए
बोली Trek करो ऐसा जो आराम से हो जाये और ज्यादा मेहनत ना करवाएं
तो मन बोला इनको घर पे ही बैठने की राय दी जाये
प्रचार किया दोस्तों मे की कोई चलेगा क्या भाई
तो दोस्तों ने जल्द ही Thumbs up किया और बस के Ticket कटवाएं
सोचता हूँ एक notebook रख ली जाये
ताकि अगली बार कविता अपने Laptop में न लिख पाए