मारी जो छीकें हमने ज़ोरदार
घबरा गए सारे परिवार वाले यार
corona का डर हर किसी के मन मे
घरवाले भी बोले तू shiftहो ले एक कमरे मे
छींक पे छींक पे छींक
अपनी तो हो ली तैं तैं फीस
छींक आये ज़ोरदार
मानो किसी ने नगाड़ा बजाया हो बहार
बुढ़ापे की चिंता सताये
छींक पे जब बदन थर थरायें
बात ये मन में बार बार खटके
बुढ़ापे मे छींकों से हड्डियां न टूटे
पानी बहे नाक से निरंतर
ऐसा लगे नल चला के छोड़ दिया किसी ने अंदर
ख़ासी भी आये जमकर
ऐसा लगे virus को बाहर फेंकने की कोशिश हो रही भयंकर
लेते की बैठें समझ न पाये
बदन मे थकावट से सुस्ती और छाये
Doctor के पास जाएँ या न जाएँ
इस दुविधा मे दिन घर पे ही बितायें
Gargle, काढ़ा, Honitus सब आज़माये
पर जुखाम और खांसी ठीक होने मे तो लगे time
खाने मे सब उबला और फीका मिले
जीभ भी बोले ठीक नहीं किया तुमने dear
मैंने कहा है अपनी सेहत सुधारने का खयाल
इसलिए तुम्हे तकलीफ दी मेरे यार
बस कुछ दिनों का है सवाल
चटपटा, मसालेदार चालू होगा फिर से अपार
बदन का तापमान थोड़ा भड़ा हुआ लगे
तो कम्बल के अन्दर हम हो लिए
लेटे लेटे अब किया क्या जाये
तब सुझा चलो एक Netflix/Prime series ही खत्म कर दे भाई
ज्यादा देर screen देखी न जाये
और सोने की कोशिश पे मन बोले हाय हाय
तो लगा एक कविता ही लिख दी जाये और ये जो शब्दों से हम अपना मन बहलाए
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